Thursday, 13 September 2018

Travelogue - Sikandra city (Agra)

Tombs of the city - Sikandra



सिकंदराका नाम सिकंदर लोदी के नाम पर पड़ा। मकबरे के चारों कोनों पर तीन मंजिला मीनारें हैं। ये मीनारें लाला पत्‍थर से बनी हैं जिन पर संगमरमर का सुंदर काम किया गया है। मकबरे के चारों ओर खूबसूरत बगीचा है जिसके बीच में बरादी महल है जिसका निर्माण सिकंदर लोदी ने करवाया था। सिकंदरा से आगरा के बीच में अनेक मकबरे हैं और दो कोस मीनार भी हैं। पांच मंजिला इस मकबरे की खूबसूरती आज भी बरकरार है।

Saturday, 8 September 2018

What is MEDITATION? ? Part=2

Meditation according to yoga in the words of Swamiji   (part-2)

  • Gate of supreme joy


From the door of meditation we reach that ultimate bliss. Prayers, rituals and other forms of worship are mere nursery of meditation. You pray, you offer something One theory was that man's spiritual strength increases with all things. Using certain rituals, rituals to rotate some special words, flowers, statues, temples, flames, brings the mind to that attitude, but that attitude is always in the soul of man, not out of nowhere. People are doing all this; But you are deliberately doing what you are doing unknowingly. This is the power of meditation.
We have to gradually train ourselves, gradually, by order. This is not a joke - this question is of one day, or years, and may not be born. dont worry! Practice should continue! Desirefully, practice should continue. Inches by inch we will move forward We will begin to realize that real wealth, which no one can take from us - that property, which no person can snatch, that property, who can not destroy anybody; That happiness, which no one can touch.

  • In search of truth


The knowledge that this experience brings, its name is Yoga. As long as there is no experience of the truth of religion, it is only a matter of talking about religion. Why such a fight in the name of God, riot and quarrel? The blood is shed in the name of God, and not for any reason. Why so? That's because no person has gone up to the original.
All the people were satisfied with the approval of some of the ancestors. They wanted others to do the same. Those who have not experienced the soul's experience or God, have the right to say or to say that there is a soul or God? If God is, then you must interview him; If there is something called a soul, then it must be experienced. Otherwise, do not believe otherwise Being hypocritical is good to be an atheist atheist. Man wants truth, he wants to experience the truth himself; And when he takes power, he realizes the truth, he experiences it in the innermost state of the heart, only when the Vedas say, "All his messages are far away, the whole Tamozhal is shattered and All curvature becomes straightforward.

  • How tense the mind is !

Swamiji says that it is so difficult to control the mind. Its a consistent upma is given from Manic Monkey. There was a monkey. He was flirtatious of nature, as if there are apes. But that was not enough, someone gave him as much wine as he had given him. This made him even more fickle. After this, a scorpion stung it. You know how worn by a scorpion is so crazy all day long. So that poor monkey found himself in unprecedented misery. After that, a demon rescues him to fulfill the amount of his suffering. Which language can describe the monstrous transience of the monkey? Simply, the human mind is like a monkey. The mind is continuously flawless in nature, then it is a crazy wine, and its instability increases. When the desire comes to power in the mind, then the people continue to sting the scorpion as a jealous person when they see success. Above him, when the ego monster enters it, then he does not count anyone ahead of him. Such is our state of mind! Think, how difficult it is to restrain such a mind.
Today's talk ends here.

Go ahead now Anand's journey will continue, please keep it with tax Thanks.
In search of truth,How tense the mind is !
Likewise, we will continue to present the message of Swami ji in front of you. You can assume all these things and take your life to a higher level, expect this thing.

Tuesday, 4 September 2018

What is meditation ? By-Swami VIVEKANAND JI -part 1

Meditation ,The path to attention and its type and enjoyment.

What is meditation? Meditation is the force, which gives us the power to resist all this (our slavery towards nature). Nature can tell us, "Look there is a beautiful thing." I do not look. Now she says, "This smell is pleasant, smell it." I say to my nose, "Do not smell it." And the nose does not sniff. "Eyes, do not look!" Nature acts such a heinous thing - kills one of my children, and says, "Now, scoundrel, sit and cry, fall into a trough! I say," I do not have to cry or fall. " Now, if you have power or strength in it, then it is not heaven or liberation that you can change this nature. That's the power of focus.


How to get it? Dozens of different rituals Every nature has its own way. But the general principle is that hold on the mind. The mind is like a lake, and every stone falling in it raises the waves. These waves do not let us see what we are. The reflection of the full moon in the water of the lake falls, but its surface is so agitated that the reflection does not clearly show us. Let it calm down. Let the waves of nature do not raise Keep calm, and then you will be leaving after sometime. Then we will know what we are. God is there already, but the mind is very fickle, always running behind the senses. You stop the senses and (still) get confused again and again. Right now, in this moment, I think that I am fine, I will meditate in God and then in one minute my mind reaches London. And if I pull it out from there, then New York goes, and I think about the actions taken by me in the past. These waves have to stop with the power of meditation.

Part -1 thanks for reading,We early part 2 published will attempt to.
Thank You _/|\_

Monday, 3 September 2018

Do you know, the third eye of Lord Shiva , and his vehicle Nandi , and his trident , all these things and the mystery and importance of

Do you know , Shiva God's third eye, and his vehicle Nandi ,and his trident, all these things and the mystery and importance of.
शिव का त्रिशुल, तीसरी आंख और नंदी – का क्या है रहस्य?


हमारी परंपरा में भगवान शिव को कई सारी वस्तुओं से सजा हुआ दिखाया जाता है। उनके माथे पर तीसरी आंख, उनका वाहन नंदी, और उनका त्रिशूल इसके उदाहरण हैं। क्या सच में शिव के माथे पर एक और आंख है? और क्या वे हमेशा नंदी और त्रिशूल को अपने साथ रखते हैं? या फिर इन्हें चिन्हों की तरह इस्तेमाल करके हमें कुछ और समझाने की कोशिश की गई है? आइये जानते हैं।

शिव की तीसरी आंख

शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब यह नहीं है कि किसी के माथे में दरार पड़ी और वहां कुछ निकल आया! इसका मतल‍ब सिर्फ यह है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। अगर मैं अपना हाथ उन पर रख लूं, तो वे उसके परे नहीं देख पाएंगी। उनकी सीमा यही है। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि बोध का एक दूसरा आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है। आपके बोध के विकास के लिए सबसे अहम चीज यह है - कि आपकी ऊर्जा को विकसित होना होगा और अपना स्तर ऊंचा करना होगा। योग की सारी प्रक्रिया यही है कि आपकी ऊर्जा को इस तरीके से विकसित किया जाए और सुधारा जाए कि आपका बोध बढ़े और तीसरी आंख खुल जाए। तीसरी आंख दृष्टि की आंख है। दोनों भौतिक आंखें सिर्फ आपकी इंद्रियां हैं। वे मन में तरह-तरह की फालतू बातें भरती हैं क्योंकि आप जो देखते हैं, वह सच नहीं है। आप इस या उस व्यक्ति को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। आप चीजों को इस तरह देखते हैं, जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी हैं। कोई दूसरा प्राणी उसे दूसरे तरीके से देखता है, जो उसके जीवित रहने के लिए जरूरी है। इसीलिए हम इस दुनिया को माया कहते हैं। माया का मतलब है कि यह एक तरह का धोखा है। इसका मतलब यह नहीं है कि अस्तित्व एक कल्पना है। बस आप उसे जिस तरीके से देख रहे हैं, जिस तरह उसका अनुभव कर रहे हैं, वह सच नहीं है।
इसलिए एक और आंख को खोलना जरूरी है, जो ज्यादा गहराई में देख सके। तीसरी आंख का मतलब है कि आपका बोध जीवन के द्वैत से परे चला गया है। तब आप जीवन को सिर्फ उस रूप में नहीं देखते जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी है। बल्कि आप जीवन को उस तरह देख पाते हैं, जैसा वह वाकई है। हाल में ही एक वैज्ञानिक ने एक किताब लिखी है, जिसमें बताया गया है कि इंसानी आंख किस सीमा तक भौतिक अस्तित्व को देख सकती है। उनका कहना है कि इंसानी आंख भौतिक अस्तित्व का सिर्फ 0.00001 फीसदी देख सकती है। इसलिए अगर आप दो भौतिक आंखों से देखते हैं, तो आप वही देख सकते हैं, जो सामने होता है। अगर आप तीसरी आंख से देखते हैं, तो आप वह देख सकते हैं जिसका सामने आना अभी बाकी है और जो सामने आ सकता है। हमारे देश और हमारी परंपरा में, ज्ञान का मतलब किताबें पढ़ना, किसी की बातचीत सुनना या यहां-वहां से जानकारी इकट्ठा करना नहीं है। ज्ञान का मतलब जीवन को एक नई दृष्टि से देखना है। किसी कारण से महाशिवरात्रि के दिन प्रकृति उस संभावना को हमारे काफी करीब ले आती है। ऐसा करना हर दिन संभव है। इस खास दिन का इंतजार करना हमारे लिए जरूरी नहीं है, मगर इस दिन प्रकृति उसे आपके लिए ज्यादा उपलब्ध बना देती है।

शिव जी के वाहन नंदी।

नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इंतजार को सबसे बड़ा गुण माना गया है। जो बस चुपचाप बैठकर इंतजार करना जानता है, वह कुदरती तौर पर ध्यानमग्न हो सकता है। नंदी को ऐसी उम्मीद नहीं है कि शिव कल आ जाएंगे। वह किसी चीज का अंदाजा नहीं लगाता या उम्मीद नहीं करता। वह बस इंतजार करता है। वह हमेशा इंतजार करेगा। यह गुण ग्रहणशीलता का मूल तत्व है। नंदी शिव का सबसे करीबी साथी है क्योंकि उसमें ग्रहणशीलता का गुण है। किसी मंदिर में जाने के लिए आपके अंदर नंदी का गुण होना चाहिए। ताकि आप बस बैठ सकें। इस गुण के होने का मतलब है - आप स्वर्ग जाने की कोशिश नहीं करेंगे, आप यह या वह पाने की कोशिश नहीं करेंगे - आप बस वहां बैठेंगे। लोगों को हमेशा से यह गलतफहमी रही है कि ध्यान किसी तरह की क्रिया है। नहीं – यह एक गुण है। यही बुनियादी अंतर है। प्रार्थना का मतलब है कि आप भगवान से बात करने की कोशिश कर रहे हैं। ध्यान का मतलब है कि आप भगवान की बात सुनना चाहते हैं। आप बस अस्तित्व को, सृष्टि की परम प्रकृति को सुनना चाहते हैं। आपके पास कहने के लिए कुछ नहीं है, आप बस सुनते हैं। नंदी का गुण यही है, वह बस सजग होकर बैठा रहता है। यह बहुत अहम चीज है – वह सजग है, सुस्त नहीं है। वह आलसी की तरह नहीं बैठा है। वह पूरी तरह सक्रिय, पूरी सजगता से, जीवन से भरपूर बैठा है, ध्यान यही है। ध्यान का मतलब मुख्य रूप से यही है कि वह इंसान अपना कोई काम नहीं कर रहा है। वह बस वहां मौजूद है। जब आप बस मौजूद होते हैं, तो आप अस्तित्व के विशाल आयाम के प्रति जागरूक हो जाते हैं जो हमेशा सक्रिय होता है। आप जागरूक हो जाते हैं कि आप उसका एक हिस्सा हैं। आप अब भी उसका एक हिस्सा हैं मगर यह जागरूकता - कि ‘मैं उसका एक हिस्सा हूं’ - ध्यान में मग्न होना है। नंदी उसी का प्रतीक है। वह बस बैठा रहकर हर किसी को याद दिलाता है, ‘तुम्हें मेरी तरह बैठना चाहिए।’ ‘ध्यानलिंग मंदिर के बाहर भी हमने एक बड़ा बैल स्थापित किया है। उसका संदेश बहुत साफ है, आपको अपनी सभी फालतू बातों को बाहर छोड़कर ध्यानलिंग में जाना चाहिए।’ – सद्‌गुरु।

शिव का त्रिशूल

शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल पहलुओं को दर्शाता है। योग परंपरा में उसे रुद्र, हर और सदाशिव कहा जाता है। ये जीवन के तीन मूल आयाम हैं, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। उन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है। ये तीनों प्राणमय कोष यानि मानव तंत्र के ऊर्जा शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियां हैं – बाईं, दाहिनी और मध्य। नाड़ियां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है। तीन मूलभूत नाड़ियों से 72,000 नाड़ियां निकलती हैं। इन नाड़ियों का कोई भौतिक रूप नहीं होता। यानी अगर आप शरीर को काट कर इन्हें देखने की कोशिश करें तो आप उन्हें नहीं खोज सकते। लेकिन जैसे-जैसे आप अधिक सजग होते हैं, आप देख सकते हैं कि ऊर्जा की गति अनियमित नहीं है, वह तय रास्तों से गुजर रही है। प्राण या ऊर्जा 72,000 विभिन्न रास्तों से होकर गुजरती है। इड़ा और पिंगला जीवन के बुनियादी द्वैत के प्रतीक हैं। इस द्वैत को हम परंपरागत रूप से शिव और शक्ति का नाम देते हैं। या आप इसे बस पुरुषोचित और स्त्रियोचित कह सकते हैं, या यह आपके दो पहलू - तर्क-बुद्धि और सहज-ज्ञान हो सकते हैं।
जीवन की रचना भी इसी के आधार पर होती है। इन दोनों गुणों के बिना, जीवन ऐसा नहीं होता, जैसा अभी है। सृजन से पहले की अवस्था में सब कुछ मौलिक रूप में होता है। उस अवस्था में द्वैत नहीं होता। लेकिन जैसे ही सृजन होता है, उसमें द्वैतता आ जाती है। पुरुषोचित और स्त्रियोचित का मतलब लिंग भेद से - या फिर शारीरिक रूप से पुरुष या स्त्री होने से - नहीं है, बल्कि प्रकृति में मौजूद कुछ खास गुणों से है। प्रकृति के कुछ गुणों को पुरुषोचित माना गया है और कुछ अन्य गुणों को स्त्रियोचित। आप भले ही पुरुष हों, लेकिन यदि आपकी इड़ा नाड़ी अधिक सक्रिय है, तो आपके अंदर स्त्रियोचित गुण हावी हो सकते हैं। आप भले ही स्त्री हों, मगर यदि आपकी पिंगला अधिक सक्रिय है तो आपमें पुरुषोचित गुण हावी हो सकते हैं। अगर आप इड़ा और पिंगला के बीच संतुलन बना पाते हैं तो दुनिया में आप प्रभावशाली हो सकते हैं। इससे आप जीवन के सभी पहलुओं को अच्छी तरह संभाल सकते हैं। अधिकतर लोग इड़ा और पिंगला में जीते और मरते हैं, मध्य स्थान सुषुम्ना निष्क्रिय बना रहता है। लेकिन सुषुम्ना मानव शरीर-विज्ञान का सबसे अहम पहलू है। जब ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करती है, जीवन असल में तभी शुरू होता है। आप एक नए किस्म का संतुलन पा लेते हैं, एक अंदरूनी संतुलन, जिसमें बाहर चाहे जो भी हो, आपके भीतर एक खास जगह बन जाती है, जो किसी भी तरह की हलचल में कभी अशांत नहीं होती, जिस पर बाहरी हालात का असर नहीं पड़ता। आप चेतनता की चोटी पर सिर्फ तभी पहुंच सकते हैं, जब आप अपने अंदर यह स्थिर अवस्था बना लें।
Shiva God's third eye, and his vehicle Nandi ,and his trident, all these things and the mystery and importance of.Were you familiar with all these things,If yes, comment down in the comment box below.

धन्यवाद

Saturday, 1 September 2018

Moral Stories By Swamiji Vivekanand, Adhunik Adhyatmik Purush

https://normansln.blogspot.com
Dhyan,Yog,aur Adhunik Adhyatmikata ke agrsara, swami Vivekanand ji ka pura jivan hi vicharo ki pravahit dhara ke saman hai.

Great Moral Stories By-Swami Vivekanand ji



  • देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है -स्वामी विवेकानंद

भ्रमण एवं भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे। उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे। वे अपने हाथों से भोजन बनाते थे। एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए। 

उनके पास सामान्यतया बच्चों का आना-जाना लगा ही रहता था। बच्चे भूखे थे। स्वामीजी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी। महिला वहीं बैठी सब देख रही थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामीजी से पूछ ही लिया- 'आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?'
स्वामीजी के अधरों पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा- 'मां, रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही।' देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।

  • स्वामी विवेकानंद जी जैसा पुत्र -

एक बार जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए थे, एक 

महिला ने उनसे शादी करने की इच्छा जताई. 

जबस्वामी विवेकानंद ने उस महिला से ये पुछा कि आप ने ऐसा प्रश्न क्यूँ किया?

स महिला का उत्तर था कि वो उनकी बुद्धि से बहुत 

मोहित है.और उसे एक ऐसे ही बुद्धिमान बच्चे कि 

कामना है. इसीलिए उसने स्वामी से ये प्रश्न कि क्या 

वोउससे शादी कर सकते है और उसे अपने जैसा एक 

बच्चा दे सकते हैं?

उन्होंने महिला से कहा कि चूँकि वो सिर्फ उनकी बुद्धि 

पर मोहित हैं इसलिए कोई समस्या नहीं है. उन्होंने कहा 

“मैं आपकी इच्छा को समझता हूँ. शादी करना और इस 

दुनिया में एक बच्चा लाना और फिर जानना कि वो 

बुद्धिमान है कि नहीं, इसमें बहुत समय लगेगा. इसके 

अलावा ऐसा हो इसकी गारंटी भी नहीं है. इसके बजाय, 

आपकी इच्छा को तुरंत पूरा करने हेतु मैं आपको एक 

सुझाव दे सकता हूँ. मुझे अपने बच्चे के रूप में स्वीकार 

कर लें .इस प्रकार आप मेरी माँ बन जाएँगी. और इस 

प्रकार मेरे जैसे बुद्धिमान बच्चा पाने की आपकी इच्छा 

भी पूर्ण हो जाएगी.“

🙏साधुवाद🙏
     धन्यवाद 
Adhunik Adhyatmikata, Dhyan, Yoga , Samuchit Jivan shali apnaa kar apne uddhar ke sarthi bane.

गहरे ध्यान के लिये 6 सुझाव



Jai Guru Dev

आप ने नियमित रूप से ध्यान का अभ्यास करते रहने के बावज़ूद भी यह गौर किया होगा कि कभी कभी जब आप ध्यान करने बैठते हो, तो आपका मन विचारों की दुनिया में घूम रहा होता हैI कैसे ध्यान करना है, यह सीखना पहली सीढ़ी है| पर क्या आप इस सीढ़ी से उपर चढ़ना चाहते हो तथा और गहरे अनुभव करना चाहते हो? कुछ सुझावों का अनुसरण करके आप इस दिशा में आगे बढ़ सकते हो |

६ उपाय गहरे ध्यान में जाने के लिए:

  • एक और चेहरे पर मुस्कुराहट लाओ | Bring A Smile To Another Face
  • मौन की गूँज का अनुभव करो | Experience the sound of Silence
  • अपने शरीर को योग आसन के द्वारा तृप्त करो | Pamper Your Body With Some Yoga Twists
  • अपने भोजन पर नज़र रखो | Keep A Watch Over Your Food
  • अपने आप में गुनगुनाओ | Sing To Yourself
  • अपने रोज़ के ध्यान का समय निश्चित रखो| Book Your Daily Meditation Time
1

एक और चेहरे पर मुस्कुराहट लाओ

आप को कैसा लगता है, जब आप किसी की मदद करते हो? खुश, संतुष्ट? क्या आप एक सकारात्मक उर्जा का प्रॅस्फुटन महसूस करते हो, जैसे कि आप के भीतर कुछ फैल (विस्तृत हो) रहा है? क्या आप जानते हैं यह क्यों हो रहा है? यह इस लिए होता है क्योंकि जब आप सेवा करते हो और किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हो, तो आप के पास भी अच्छी तरंगे और आशीर्वाद आ जाती हैं|
सेवा पात्रता अथवा योग्यता भी लाती है| और यही पात्रता तुम्हे ध्यान में और गहरे अनुभव देती है| जब मैं सेवा करती हूँ तो उसका सीधा लाभ मुझे ही मिलता हैl संतोष की भावना के रूप में, जिससे मैं प्रसन्न और शांत रहती हूँ | जब मैं शांत और प्रसन्न रहती हूँ तो यह गारंटी है कि ध्यान गहरा लगता है,“ शिल्पी मदन बताती हैं|
2

मौन की गूँज का अनुभव करो

कल्पना करो की आप सुबह सुबह छत पर खड़े हो, और उगते हुए सूरज के सौंदर्य से मंत्रमुग्ध, लालिमा से भरे विशाल आकाश की ओर देख रहे हो| क्या आप को इस सौंदर्यता के साथ रह कर एक गहरी शांति और एकता का अनुभव हो रहा है? सौंदर्यता जो आप को शब्दों से परे ले जाता है? आप का मन इतना शांत और स्थिर हो जाता है| क्या कभी सोचा है क्यूँ? यह मौन है जिस में कम विचार आते हैं और आप का मन स्थिर हो जाता है|
अधिकांश समय जब तब हम व्यर्थ ही बातें करते रहते हैं| तब हमारा मन भी बातचीत करता रहता है| हमारी इंद्रियाँ जानकारी संग्रह करने में व्यस्त रहती हैं और हमारे उपर विचारों और भावनाओं की बौछार करने लगती है |
मौन, ध्यान के साथ साथ चलता है| जब आप मौन में होते हो, आपके मन की रफ़्तार कम हो जाती है और आप आसानी से ध्यान में चले जाते हो|मौन और ध्यान को एक साथ अनुभव करने का एक आसान तरीका है ,आर्ट ऑफ लिविंग पार्ट २ कार्यक्रम ( Art of Living Part 2 program)जो हर सप्ताह के अंतिम दिनों में आर्ट ऑफ लिविंग के इंटरनॅशनल केंद्र, बंगलूरु में होता है|
“कभी कभी मैं विचारों के अनंत बहाव में बह जाती हूँ| मौन रखने से धीरे धीरे विचारों की यह बमबारी कम हो जाती है और मैं बहुत गहरे ध्यान का अनुभव करती हूँ“, बताती हैं हितांशी सचदेवा
3

अपने शरीर को योग आसन के द्वारा तृप्त करो

क्या आप ने महसूस किया है कि ध्यान के समय कई कई दिन आप बहुत बेचैनी महसूस करते हैं और गहराई में नही जा पाते? लंबे समय तक काम करते रहने से शरीर में अकड़न और दर्द हो जाता है और इसी अकड़न के कारण आप बेचैनी महसूस करते हो| कुछ योगासन करने से शरीर की ये अकड़न चली जाती है और बेचैनी दूर हो जाती है| इसी के साथ आप का मन स्थिर हो जाता है और गहरे ध्यान का अनुभव होता है|
4

अपने भोजन पर नज़र रखो

उन दिनों के बारे में सोचो जब आप ने, तले-भुने और माँसाहारी भोजन खाने के बाद ध्यान किया हो और, फिर उन दिनों के बारे में सोचो जब आप ने हल्का और पौष्टिक भोजन खाने के बाद ध्यान किया हो| क्या आप ने अपने दोनों ध्यान में कोई अंतर महसूस किया? यह इसलिये होता है क्यूँकि हमारे भोजन का सीधा असर / प्रभाव हमारे मन पर पड़ता है|
5

अपने आप में गुनगुनाओ

क्या आप ने ध्यान दिया है की कैसे विभिन प्रकार के संगीत (music) हमारे मन में अलग अलग भावनाएँ जाग्रत करते है? हम ९०% या उस से ज़्यादा आकाशिय तत्व से बने हुए हैं, इस लिए ध्वनि हमारे उपर एक गहरा असर डालती है| सत्संग में गाने से भावनाएँ पवित्र होती हैं और आप एक विस्तार का अनुभव करते हो| हमारा "छोटा मन" जो निरंतर बातचीत करता रहता है शांत हो जाता है, और जब आप ध्यान करते हो तो आप का गहरा अनुभव होता है|
6

अपने रोज़ के ध्यान का समय निश्चित रखो

एक अनुशासन रखने और अभ्यास का सम्मान करने से गहरा ध्यान लगता है| इस लिए अपने रोज़ के ध्यान का समय निश्चित करो और जादू देखो कैसे आप ध्यान की गहराईओं में चले जाते हो|
पहले मैं दिन के अलग- अलग समय पर ध्यान करती थी| पिछले कुछ महीनों से मैं रोज़ दिन में भोजन से पहले ध्यान करती हूँ| मैं ने अनुभव किया कि रोज ध्यान एक ही समय पर करने से मेरा ध्यान बढ़िया और गहरा होता है|" दिव्या सचदेव बताती हैं|
श्री श्री रविशंकर जी के ज्ञान वार्ता से प्रेरित|
प्रियदर्शिनी हरीराम, जो एक सहज समाधि ध्यान की टीचर है, तथा दिव्या सचदेव के बीच बातचीत से प्राप्त|

Friday, 31 August 2018

ध्यान के लाभ

 Benefits of Meditation 

 ध्यान - यह किसी वस्तु पर अपने विचारों का केन्द्रीकरण या एकाग्रता नहीं है, अपितु यह अपने आप में विश्राम पाने की प्रक्रिया है। ध्यान करने से हम अपने किसी भी कार्य  को एकाग्रता पूर्ण सकते हैं।

ध्यान के 5 लाभ -

  1. शांत चित्त
  2. अच्छी एकाग्रता
  3. बेहतर स्पष्टता
  4. बेहतर संवाद
  5. मस्तिष्क एवं शरीर का कायाकल्प व विश्राम

ध्यान के कारण शरीर की आतंरिक क्रियाओं में विशेष परिवर्तन होते हैं और शरीर की प्रत्येक कोशिका प्राणतत्व (ऊर्जा) से भर जाती है। शरीर में प्राणतत्व के बढ़ने से प्रसन्नता, शांति और उत्साह का संचार भी बढ़ जाता है।

ध्यान से शारीरिक लाभ

  1. उच्च रक्तचाप का कम होना, रक्त में लैक्टेट का कम होना, उद्वेग/व्याकुलता का कम होना।
  2. तनाव से सम्बंधित शरीर में कम दर्द होता है। तनाव जनित सिरदर्द, घाव, अनिद्रा, मांशपेशियों एवं जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है।
  3. भावदशा व व्यवहार बेहतर करने वाले सेरोटोनिन हार्मोन का अधिक उत्पादन होता है।
  4. प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार आता है।
  5. ऊर्जा के आतंरिक स्रोत में उन्नति के कारण ऊर्जा-स्तर में वृद्धि होती है।

ध्यान से होने वाले 11 मानसिक लाभ

ध्यान, मस्तिष्क की तरंगों के स्वरुप को अल्फा स्तर पर ले आता है जिससे चिकित्सा की गति बढ़ जाती है। मस्तिष्क पहले से अधिक सुन्दर, नवीन और कोमल हो जाता है। ध्यान मस्तिष्क के आतंरिक रूप को स्वच्छ व पोषण प्रदान करता है। जब भी आप व्यग्र, अस्थिर और भावनात्मक रूप से परेशान होते हैं तब ध्यान आपको शांत करता है। ध्यान के सतत अभ्यास से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं:
  1. व्यग्रता का कम होना
  2. भावनात्मक स्थिरता में सुधार
  3. रचनात्मकता में वृद्धि
  4. प्रसन्नता में संवृद्धि
  5. सहज बोध का विकसित होना
  6. मानसिक शांति एवं स्पष्टता
  7. परेशानियों का छोटा होना
  8. ध्यान मस्तिष्क को केन्द्रित करते हुए कुशाग्र बनाता है तथा विश्राम प्रदान करते हुए विस्तारित करता है।
  9. बिना विस्तारित हुए एक कुशाग्र बुद्धि क्रोध, तनाव व निराशा का कारण बनती है।
  10. एक विस्तारित चेतना बिना कुशाग्रता के अकर्मण्य/ अविकसित अवस्था की ओर बढ़ती है।
  11. कुशाग्र बुद्धि व विस्तारित चेतना का समन्वय पूर्णता लाता है।
ध्यान आपको जागृत करता है कि आपकी आतंरिक मनोवृत्ति ही प्रसन्नता का निर्धारण करती है।

ध्यान का आध्यात्मिक लाभ और अनुभूति

ध्यान का कोई धर्म नहीं है और किसी भी विचारधारा को मानने वाले इसका अभ्यास कर सकते हैं।
  1. मैं कुछ हूँ इस भाव को अनंत में प्रयास रहित तरीके से समाहित कर देना और स्वयं को अनंत ब्रह्मांड का अविभाज्य पात्र समझना।
  2. ध्यान की अवस्था में आप प्रसन्नता, शांति व अनंत के विस्तार में होते हैं और यही गुण पर्यावरण को प्रदान करते हैं, इस प्रकार आप सृष्टी से सामंजस्य में स्थापित हो जाते हैं।
  3. ध्यान आप में सत्यतापूर्वक वैयक्तिक परिवर्तन ला सकता है। क्रमशः आप अपने बारे में जितना ज्यादा जानते जायेंगे, प्राकृतिक रूप से आप स्वयं को ज्यादा खोज पाएंगे।

ध्यान से लाभ की प्राप्ति संभव

ध्यान के लाभों को महसूस करने के लिए नियमित अभ्यास आवश्यक है। प्रतिदिन यह कुछ ही समय लेता है। प्रतिदिन की दिनचर्या में एक बार आत्मसात कर लेने पर ध्यान दिन का सर्वश्रेष्ठ अंश बन जाता है। ध्यान एक बीज की तरह है। जब आप बीज को प्यार से विकसित करते हैं तो वह उतना ही खिलता जाता है.
प्रतिदिन, सभी क्षेत्रों के व्यस्त व्यक्ति आभार पूर्वक अपने कार्यों को रोकते हैं और ध्यान के ताज़गी भरे क्षणों का आनंद लेते हैं। अपनी अनंत गहराइयों में जाएँ और जीवन को समृद्ध बनाएं।

🙏साधुवाद🙏

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